मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

गंगा की पावन धारा (गीत)

गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे।
हर गीत निखर जाये मेरा, तुम आओ जब मेरे द्वारे॥
            मैं पलक पावणे बैठा था,   
            मेरा अपना भी कोई आयेगा।
            ऐसा ही मैं भी गीत कोई लिखूँ,
            पत्थर मूरत हो जायेगा॥
यह गीत सिंधु सा हो जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥
            तू तुलसी की रामायण,
            मैं प्रेमचंद की रंगशाला।
            तू गा‌लिब की गजल बनें,
            बच्चन की मैं भी मधुशाला॥
गीतों को सरगम मिल जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥
            तुम वृहद कोष हो शब्दों का,
            मैं एक शब्द में हो गया।
            अब तन मेरा मथुरा का यौवन,
            मन वृन्दावन हो गया॥
हर गीत ही गीता हो जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे॥

मन बौरा गया (गीत)

पा लिया जब से तुम्हें, मन मेरा बौरा गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥
            दे मुझे सजनी निमंत्रण,
            स्वप्न की बेला में आयी।
            मिल गये उपहार अनुपम,
            प्रीत ने डोली सजायी॥
पा लिया उपहार जब से मन में, कुछ-कुछ हो गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥
            है अधर मुस्कान लाली,
            नयन में मधुमास छाया।
            ली कसम जब से तुम्हारी,
            दीप मन का जगमगाया॥
ले रहा अंगड़ाई मौसम, याद कोई आ गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥
            बज उठे नुपूर कहीं पर,
            दूर कोई गा रहा है।
            रंग जीवन के संजोये,      
            पास कोई आ रहा है॥
गीत अधरों पर मिलन का, आज कोई आ गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥

हंसीदार दोहे

बुढि‌या साठ साल की, करती सौ श्रंगार।
निकल गयी अब पैठ में बूढे‌ खायें पछार॥

जोड़-तोड़ कुछ भी करो बढ़ते जाओ यार।
राजनीति में जायज है, गठबंधन सरकार॥

रोज सिनेमा जाईये, साली गले लगाये।
पत्नी पीछे अब चले, दो आंसू टपकाये॥

दफ्तर इन्कम टेक्स के, अध्यापक अब जाये।
कुर्ता पज्जमा फाड़कर, हाल बेहाल बनाये।।

बोतल पीकर झूमते, अब घर कू हम जाये।
उतर जायेगा सब नशा, बेलन देय सरकाये॥

पत्नी बेलन मारकर, करे कमर पर चोट।
थाने में कर देखिये, नाहिं कोई रपोट॥

शायर गजल सुनायके, सब कू करता बोर।
हमको देखो मिल गया, वंशमोर घनघोर॥

नेता चुनाव

चेयरमैन के चुनाव में
दो पार्टियां खड़ी हुईं
एक थी धनुष-बाण
दूसरी थी कृपाण
एक नेता जी धनुष बाण चढ़ाए
दूसरे नेता जी के सम्मुख गुनगुनाए
मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाए
बोल तेरे साथ किया सुलूक किया जाए। 

डरा कवि

विवाह मण्डप से भाग गया
उसकी हिम्मत जवाब दे गयी
नहीं
वास्तव में
उसकी हिम्मत लौट आयी।

सांत्वना

वह शादी के बाद
मुझे अपना अच्छा दोस्त मानने लगा
सभी ने बधाई दी
मैंने तो केवल
सांत्वना दी थी।